खुशियों से भर देंगी झोली…होगी संतान प्राप्ति! माता के इस दरबार में लगा दीजिए अर्जी, अनोखा है इतिहास

NEWSDESK
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माता के इस धाम में देश-विदेश से लोग आते हैं. आज हम माता के धाम छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ की बात करने वाले हैं, जहां माता बमलेश्वरी विराजमान हैं. मंदिर के गर्भगृह के सामने ही सिंदूरी रंग में सजी मां बमलेश्वरी का भव्य रूप नजर आता है.

माता अनेक रूपों में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं. आज हम माता के धाम छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ की बात करने वाले हैं, जहां माता बम्लेश्वरी विराजमान हैं. माता के इस धाम में देश-विदेश से लोग आते हैं. कोई 1100 सीढ़ियां पैदल चढ़कर यहां पहुंचता है, तो कोई रोप-वे से मां के दरबार पहुंचता है. जब भक्त मंदिर के गर्भगृह के सामने मुख्य दरबार में पहुंचते हैं, तो सामने सिंदूरी रंग में सजी मां बम्लेश्वरी का भव्य रूप नजर आता है. लंबी-लंबी कतारों में खड़े भक्त घंटों यहां मां की एक झलक भर पाने का इंतजार करते नजर आते हैं.

आम दिनों में मां बम्लेश्वरी मंदिर का पट सुबह 4 बजे से ही खुल जाता है. दोपहर में 1 से 2 के बीच माता के द्वार का पट बंद किया जाता है. 2 बजे के बाद इसे रात के 10 बजे तक दर्शन के लिए खुला रखा जाता है. वहीं नवरात्रि में ये मंदिर 24 घंटे खुला रहता है. मां बम्लेश्वरी के दरबार में पहुंचकर भक्तों को हर मुश्किलों से लड़ने का मार्ग मिलता है.

मंदिर के लिए हैं 1100 सीढ़ियां
मां बम्लेश्वरी का दरबार 1600 मीटर ऊंची पहाड़ी पर है. श्रद्धालुओं को यहां तक पहुंचने के लिए 1100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. हालांकि यहां रोपवे की भी व्यवस्था है. पहाड़ी पर स्थित मां बम्लेश्वरी का मुख्य मंदिर है. उन्हें बड़ी बम्लेश्वरी के रूप में जाना जाता है. पहाड़ के नीचे भी मां बम्लेश्वरी का एक मंदिर है, जो छोटी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है. मान्यता है कि वे मां बम्लेश्वरी की छोटी बहन हैं.

2200 साल पुराना है इतिहास
यहां पर आए लोगों ने लोकल 18 को बताया कि मां बम्लेश्वरी शक्तिपीठ का इतिहास लगभग 2200 साल पुराना है. पहले डोंगरगढ़ कामाख्या नगरी कहलाती थी. समय के साथ डोंगरी और फिर डोंगरगढ़ कहलाने लगी. डोंगरगढ़ का इतिहास मध्य प्रदेश के उज्जैन से जुड़ा है. इसे वैभवशाली कामाख्या नगरी के रूप में जाना जाता था. मां बम्लेश्वरी को मध्य प्रदेश के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी कहा जाता है. इतिहासकारों ने इस क्षेत्र को कल्चुरी काल का पाया है. मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी हैं. उन्हें मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है. उन्हें यहां मां बम्लेश्वरी के रूप में पूजा जाता है. यहां की मूर्तिकला पर गोंड़ संस्कृति का पर्याप्त प्रभाव दिखता है. गोंड़ राजाओं के किले के प्रमाण भी यहां मिलते हैं.

राजा वीरसेन ने की थी मंदिर की स्थापना
ऐसा बताया जाता है कि करीब 2200 साल पहले यहां राजा वीरसेन का शासन था. वह प्रजापालक राजा थे और सभी उनका बहुत सम्‍मान करते थे. लेकिन एक दु:ख था कि उन्‍हें कोई संतान नहीं थी. पंडितों के बताए अनुसार उन्‍होंने पुत्र रत्‍न की प्राप्ति के लिए शिवजी और मां दुर्गा की उपासना की. साथ ही अपने नगर में मां बम्‍लेश्‍वरी के मंदिर की स्‍थापना करवाई. इसके बाद उन्‍हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई. उनके पुत्र कामसेन हुए, जो राजा की ही तरह प्रजा के प्रिय राजा बने.

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