बंगाल में भाजपा ने ’70-30′ से बनाई दूरी, ममता के वोट बैंक में ऐसे लगाएगी सेंध, होगा बड़ा खेल!

NEWSDESK
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पश्चिम बंगाल में भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था. लेकिन, 2021 के विधानसभा चुनाव में वह कमजोर हो गई. जानकार इसका एक कारण राज्य में अल्पसंख्यक वोट बैंक को मानते हैं. इस पर फिलहाल तृणमूल कांग्रेस का एकाधिकार है. इसी वोट बैंक में अब सेंध लगाने की कोशिश में भाजपा भी जूट गई है.

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में सियासी पारा चरम पर है. लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है. भाजपा राज्य की 42 में से कम से कम 25 सीटों पर कमल खिलाने का टार्गेट लेकर चल रही है वहीं तृणमूल कांग्रेस ने यह चुनाव अपने दम पर लड़कर खुद को साबित करने जुटी है. बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 18 और तृणमूल को 22 सीटें मिली थीं. दो सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार जीते थे. लेकिन, 2021 के विधानसभा में भाजपा का प्रदर्शन अपेक्षाकृत खराब हो गया. उस वक्त भाजपा ने चुनाव में बहुसंख्यक हिंदू वोटरों पर फोकस किया, मगर उसे अच्छे नतीजे नहीं मिले. ऐसे में 2024 के लोकसभा में पार्टी गियर बदलती दिख रही है. अब उसने ’70-30′ के नारे से दूरी बना ली है.

अल्पसंख्यक समुदाय पर फोकस
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार का कहना है कि अल्पसंख्यक समुदाय को अहसास हो गया है कि उन्हें बेवकूफ बनाया गया है. उनका उपयोग किया गया है. उन्हें नागरिक नहीं माना जाता. उन्हें वोट बैंक के तौर पर देखा जाता है. अल्पसंख्यक समुदाय इस बार भाजपा को ज्यादा वोट करेगा.

हालांकि, विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा

‘सत्तर-तीस’ की बात मगर हिंदू वोटर दूर
‘सत्तर-तीस’ की बात करने के बावजूद हिंदू वोट पूरी तरह से भाजपा को नहीं मिले. पर्यवेक्षकों के एक वर्ग के अनुसार भाजपा के एक खेमे को अहसास हो गया है कि राज्य में तृणमूल को हराने के लिए उन्हें मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाना ही होगा. बंगाल भाजपा

के मुख्य प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य या शुभेंदु अधिकारी के शब्दों में, ”अल्पसंख्यकों को अहसास हो गया है कि आज कोई विभाजन नहीं है. विकास आखिरी चीज है. और विकास और मोदी पर्यायवाची हैं. इसलिए वे आज भाजपा के मार्च और विभिन्न राजनीतिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा ले रहे हैं.”

146 विस क्षेत्र मुस्लिम बहुल
पश्चिम बंगाल की लगभग 30 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है. 146 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां 25 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं. इन 146 निर्वाचन क्षेत्रों में से तृणमूल ने 131 सीटें जीतीं. भाजपा के पास सिर्फ 14 सीटें हैं. नौशाद सिद्दीकी की आईएसएफ को एक सीट मिली.

 बार-बार ध्रुवीकरण के अपने हथियार को धार देती नजर आ रही थी. कुछ महीने पहले तक विपक्षी दल के नेता शुभेंदु अधिकारी के भाषण में बार-बार ‘सत्तर-तीस’ का मुद्दा उठता था. अब लोकसभा चुनाव में उन्हें यह भी उम्मीद है कि अल्पसंख्यक वोट भाजपा को मिलेगा. बीते नतीजों से साफ है कि ध्रुवीकरण के हथियार के इस्तेमाल से बंगाल भाजपा को ज्यादा फायदा नहीं हुआ है. क्योंकि, मुस्लिम वोटर जमीनी स्तर पर अधिक एकजुट होकर वोट करते हैं.

परिणामस्वरूप यह स्पष्ट है कि लगभग 100 फीसदी  मुस्लिम वोट जमीनी स्तर पर तृणमूल के साथ चले गए. अब भाजपा लोकसभा चुनाव में इस वोट को बांटना चाहती है. कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल दौरे के दौरान अपने भाषण में कहा था, ”तृणमूल को यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि उनके पास एक गारंटीशुदा वोट बैंक है. अब मुस्लिम माताएं-बहनें भी तृणमूल सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आगे आएंगी.” हालांकि, सत्तारूढ़ खेमे का कहना है कि जिस तरह से ममता बनर्जी ने अल्पसंख्यकों के लिए काम किया है, उसके लिए वे तृणमूल नेता पर ही भरोसा करेंगे. लेकिन यह तो वक्त ही बताएगा कि आखिर में अल्पसंख्यकों का वोट किसे मिलता है.

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