डर फिल्म के विषय से नहीं विकास बहल से ज्यादा था, और जिसका डर था बेदर्दी वही बात हो गई

NEWSDESK
9 Min Read
Movie Review
शैतान
कलाकार
अजय देवगन , ज्योतिका , जानकी बोदीवाला , अंगद राज और आर माधवन
लेखक
कृष्णदेव याग्निक (मूल गुजराती) और आमिल कीयान खान (हिंदी अनुकूलन)
निर्देशक
विकास बहल
निर्माता
अजय देवगन , ज्योति देशपांडे , कुमार मंगत पाठक और अभिषेक पाठक
रिलीज:
8 मार्च 2024

हैदर अली आतिश का एक शेर है, बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का, जो चीरा तो इक कतरा ए खूं न निकला। कुछ कुछ ऐसा ही हाल रहा हिंदी सिनेमा के दर्शकों को डराने की विकास बहल की नई कोशिश फिल्म ‘शैतान’ का। इन दिनों फिल्म या सीरीज के निर्देशन या क्रिएशन में विकास बहल का नाम जुड़ा हो तो दर्शक वैसे ही डरा हुआ रहता है। फिर भी ‘शैतान’ का विषय भय के प्रति आकर्षण के मनोविज्ञान को पकड़ने वाला विषय नजर आता है। माधवन का पहली बार हिंदी सिनेमा में (तेलुगु में वह विलेन बन चुके हैं) खलनायक बनकर परदे पर आना भी एक अलग तरह का आकर्षण है। काला जादू और वशीकरण देश की लोक कथाओं में सनातन धर्म के समय से मौजूद हैं। गांवों में बच्चा ज्यादा रोए, पेट बहुत गुड़गुड़ाए या तेज बुखार आने पर माएं आज भी रायलोन से नजर उतारती है और साथ में एक मंत्र बुदबुदाती है जिसमें देश की सबसे बड़ी जादूगरनी लोना के नाम का जिक्र आता है। साथ में एक जातिसूचक शब्द भी होता है, जिससे पता ये भी चलता है कि सामाजिक वर्ण व्यवस्था में उपयोग के अनुसार हर जाति का सामाजिक सम्मान होते रहने की परंपरा युगों से है।

Shaitaan movie review by Pankaj Shukla Ajay Devgn R Madhavan Jyotika Janki Bodiwala Anngad Raaj Vikas Behl
बढ़िया विषय पर बनी कमजोर फिल्म
खैर, बात फिल्म ‘शैतान’ की। एक बहुत ही उम्दा, रोचक और जुगुप्सा जगाने वाले बेहतरीन विषय पर बनी ये एक बहुत ही खराब फिल्म है। हो सकता है इस लाइन को पढ़ने के बाद आपकी ये समीक्षा आगे पढ़ने की रुचि भी न रहे लेकिन यहां समझना ये जरूरी है कि हिंदी सिनेमा को डरावनी फिल्मों के नए विषय क्यों नहीं मिल रहे और जब दूसरी भाषाओं में बनी फिल्मों से विषय ‘खरीद’ भी लिए जाते हैं तो उनके हिंदी अनुकूलन में हिंदी सिनेमा मात कहां खा जाता है? बहुत बेसिक बात से बात शुरू करता हूं। हिंदी फिल्में जब शुरू होती हैं तो तमाम नामी गिरामी लोगों के जिक्र के बाद फिल्म का नाम पूरे परदे पर आता है। पहले अंग्रेजी में, फिर हिंदी में और कभी इसके बाद उर्दू में भी पूरे परदे पर फिल्म का नाम लिखा आया करता था। सिर्फ एक भाषा को परदे से हटाकर हिंदी सिनेमा ने अपना करीब 30 फीसदी दर्शक समुदाय खुद से दूर कर लिया है। अब बात आती है, फिल्म के नाम और फिल्म के धरातल की। फिल्म ‘शैतान’ का बस नाम ही काफी है, एक खास दर्शक वर्ग को सिनेमाघरों तक खींच लाने के लिए। ऊपर से माधवन विलेन हों और ट्रेलर में एक किशोरी आतंकित सी नजर आए तो काम करीब करीब हो जाता है। लेकिन, इस फिल्म ने पहला गच्चा खाया अपने टीजर की भाषा से। अनावश्यक शब्दों को मैगी जैसा उलझाकर जबर्दस्ती का रदीफ और काफिया मिलाकर बने टीजर ने एक बनावटीन का एहसास दर्शकों को कराया।

Shaitaan movie review by Pankaj Shukla Ajay Devgn R Madhavan Jyotika Janki Bodiwala Anngad Raaj Vikas Behl
अनजान व्यक्तियों से दोस्ती न बढ़ाएं
डरावनी फिल्मों के शौकीनों को एक बहुत बड़ी संख्या हिंदी फिल्मों के दर्शकों के बीच जमाने से रही है। फिल्म ‘शैतान’ को देखने की लालसा भी कइयों में रही ही होगी, ये उम्मीद पहले टीजर से टूटी, फिर ट्रेलर ने कुछ उम्मीद बांधी भी तो फिल्म के दो दृश्यों ने इसे पूरी तरह चकनाचूर कर दिया। फिल्म की कहानी क्या है, ये अब तक सबको पता ही चल चुकी है। रास्ते में मिले अनजान आदमी से लड्डू खाकर उसके वश में आई एक किशोरी है, शहर से दूर फार्म हाउस में फंसा एक परिवार है और एक शैतान है जो कायनात को अपने काबू में करना चाहता है। कहानी उत्तराखंड में घट रही है। फिल्म का एक भी किरदार न कुमाऊंनी बोलता दिखता है और न ही गढ़वाली। बस गाडी पर नंबर प्लेट उत्तराखंड के हैं। वातावरण पूरा नकली है। खैर, पहले बात उस दृश्य की जिसमें विकास बहल फिल्म को एकदम से डुबकी लगवा देते हैं। मिस्ड कॉल नंबर की तलाश में पुलिस कबीर के घर आई है। बिटिया गैस सिलेंडर की रबड़ निकालकर हाथ में माचिस लिए उकड़ू बैठी है। दो ढाई मिनट का पूरा सीन हो जाता है। पुलिस वाले को चलते समय लगता है कि गैस लीक हो रही है। घरेलू गैस में बदबू लाने के लिए जो इथाइल मरकैप्टन मिलाया जाता है, उसकी तीक्ष्णता इतनी होती है कि ये तीस सेकंड में पूरे मोहल्ले को गैस लीक होना बता देती है, लेकिन विकास बहल, विकास बहल हैं।

Shaitaan movie review by Pankaj Shukla Ajay Devgn R Madhavan Jyotika Janki Bodiwala Anngad Raaj Vikas Behl
गूगल मैप से शैतान का पीछा
दूसरा दृश्य समझिए। शैतान जा चुका है। बेटी को भी ले जा चुका है। मरणासन्न हालत में बेटा अपने पिता को दीदी को वापस लाने को कहता है। पिता ढूंढे तो शैतान को कहां ढूंढे तो विकास बहल फ्लैशबैक में जाते हैं। जीने और मरने की हालत वाले दृश्य में दिखाते हैं कैसे इंसान ने शैतान की मोबाइल की लोकेशन शेयर का ‘कांड’ उसी दौरान कर डाला था! फिल्म को मॉडर्न दिखाने के लिए गूगल मैप ठीक है लेकिन ऐसी फिल्म में? उत्तराखंड में काला जादू की अपनी अलग परंपरा है। लेकिन, यहां मामला खुलने से पहले शैतान के इरादे कुछ और ही नजर आते हैं। लड़कियों का झुंड देखकर पहले तो लगता है कि ये कोई मनोरोगी होगा, जो बेटियों को बेचने का धंधा जैसा कोई घिनौना काम करता होगा। लेकिन, विकास बहल ‘शैतान’ शब्द को दिल पर ले लेते हैं! फिल्म का देखा जाए तो टेकऑफ ही गड़बड़ है। लोककथाओं में गुंथी और काला जादू व वशीकरण जैसे विषय पर बनी फिल्म में जो पहला संवाद बाप-बेटे के बीच हो और उसमें बेटा अपने बाप को नाम लेकर बुलाता दिखे तो इस तरह की फिल्मों के परंपरागत दर्शकों का फिल्म से नाता तुरंत टूट जाता है। दिक्कतें और भी तमाम हैं लेकिन इतना सब पढ़ने के बाद आप फिल्म देखने से जाने से तो रहे। जियो स्टूडियोज की फिल्म है। लेकिन, ये जियो सिनेमा पर नहीं नेटफ्लिक्स पर आएगी। जी हां, फिल्म के ओटीटी राइट्स पहले ही बिक चुके हैं।

Shaitaan movie review by Pankaj Shukla Ajay Devgn R Madhavan Jyotika Janki Bodiwala Anngad Raaj Vikas Behl
रीमेक के राजा बनने से चूके अजय
फिल्म समीक्षाओं में इसकी कहानी, निर्देशन, कलाकारों के अभिनय, तकनीकी पक्ष और संगीत का बात करना अनिवार्य सा माना जाता है। तो कहानी यहां एक गुजराती फिल्म ‘वश’ की है, ओरिजिनल फिल्म कोई देख न सके, इसलिए इसके फुटप्रिंट डिजिटल से पूरी तरह मिटाए जा चुके हैं। हिंदी अनुकूलन में हिंदी लोकभावनाएं कहीं हैं नहीं। अभिनय के मामले में अजय देवगन की बेटी के किरदार में जानकी बोदीवाला का अभिनय अव्वल नंबर है। इंटरवल तक फिल्म आर माधवन के अभिनय और उनके किरदार के रहस्यों के चलते टिकी रहती है। उसके बाद दोनों एकदम से धड़ाम हो जाते हैं। अजय देवगन, ज्योतिका, जानकी और अंगद मिलकर फिल्म की शुरुआत ‘दृश्यम’ जैसी करते हैं। कोई तो गाना भी कुछ कुछ वैसा ही सुनाई देता है। याद नहीं रहता, वो अलग बात है। हां, फिल्म का पार्श्वसंगीत असरदार है। फिर जैसे इसका असर क्लाइमेक्स में नमक से आयोडीन की तरह उड़ता है, वैसे ही फिल्म की आत्मा भी। अजय देवगन की फिल्मों मे रात के दृश्यों की नीला लेंस लगाकर दिन में सिनेमैटोग्राफी कैसे होती है, ये देखना सिनेमा के छात्रों के लिए दिलचस्प होगा। संपादन की क्राफ्ट जैसा भी कुछ इस फिल्म में है नहीं। बहुत ही उम्मीद थी इस फिल्म से लेकिन विकास बहल ने एक बेहतरीन विषय पर एक बहुत ही खराब फिल्म बना दी है।
Share this Article